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गैंगस्टर की बुलेट खरीदने पर पुलिस कमिश्नर का पीआरओ लाइन हाजिर

प्रकरण की जांच संयुक्त पुलिस आयुक्त आनंद करेंगे 

कानपुर। कानपुर पुलिस कमिश्नर का पीआरओ दारोगा अजय मिश्रा गैंगस्टर की बुलेट से चलता है। पुलिस कमिश्नर विजय सिंह मीना ने पूरे मामले में जांच बैठा दी है। दारोगा के पास ये बुलेट कब आई, बेटे के नाम कब ट्रांसफर हुई। इससे पहले की ओनरशिप किसकी थी। इसकी जानकारी आरटीओ कानपुर से मांगी गई है।




इस गठजोड़ के तार जेल से जुड़े

शुरुआती जांच में इस गठजोड़ के तार जिला जेल से जुड़े हैं। छात्रा सुसाइड मामले में दारोगा जेल में बंद था। अंदेशा है कि वही पर उसकी दोस्ती गैंगस्टर बलराम से हुई थी। जेल से बाहर आने के बाद गैंगस्टर ने बुलेट दारोगा के बेटे उत्कर्ष के नाम ट्रांसफर की। ये बुलेट पहले गैंगस्टर की बीवी सोनी के नाम पर थी। इसी से दारोगा ड्यूटी पर आता-जाता है। बुलेट का नंबर यूपी-78 एफ जे 9533 है। अजय मिश्रा के मुताबिक वह बलराम राजपूत को नहीं जानते हैं।

बलराम चकेरी का ड्रग्स तस्कर है। उसके खिलाफ 16 मामलों में केस दर्ज हैं। कानपुर के अलावा इसके खिलाफ 4 केस हरियाणा के सिरसा में भी हैं। कानपुर के कैंट थाने और सिरसा से ड्रग्स तस्कर पर गैंगस्टर की कार्रवाई हुई है। इतना ही नहीं, 2 बार गुंडा एक्ट भी लग चुका है। गैंगस्टर की पत्नी सोनी के खिलाफ भी एनडीपीएस के मुकदमे दर्ज हैं। पुलिस आयुक्त विजय सिंह मीणा ने बताया कि पीआरओ अजय मिश्रा पर गंभीर आरोप लगाए गए थे इसलिए उन्हें लाइन हाजिर कर दिया गया है प्रकरण की जांच संयुक्त पुलिस आयुक्त आनंद प्रकाश तिवारी करेंगे।

छात्रा के सुसाइड केस में जेल गया था दारोगा

4 साल पहले दारोगा अजय की कानपुर यूनिवर्सिटी चौकी में तैनाती थी। इस दौरान वहां पढ़ने वाली बीसीए छात्रा ने छेड़खानी से तंग होकर सुसाइड कर लिया था। शिकायत के बाद भी चौकी में सुनवाई नहीं हुई थी। परिजनों ने मामले में आत्महत्या दुष्प्रेरण (धारा 306) में दारोगा को भी आरोपी बनाया था। इसके बाद दरोगा को कल्याणपुर थाने की पुलिस ने 4 अप्रैल 2018 गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था।
जेल में बंद रहने के दौरान दरोगा अजय की मुलाकात चकेरी निवासी ड्रग्स तस्कर बलराम राजपूत से हुई। अजय 2 मार्च 2020 को जेल से जमानत पर छूटा था। उसकी दोबारा बहाली हुई। मौजूदा समय में वो पुलिस कमिश्नर का पीआरओ है। अजय मिश्रा ने बताया,"मैंने बुलेट का 90 हजार रुपए नगद देकर खरीदा था। रुपए लेन-देन का कोई साक्ष्य नहीं है।"

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