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जैसी जिसकी भावना वैसे उसके भगवान

Anurag Kumar Dwivedi (Editor)

विष्णु भगवान के दो अवतारों की कथाएं खूब सुनने को मिलती है। एक राम तो दूसरे श्रीकृष्ण। गांव से लगाकर शहरों में ही नहीं विदेश तक में श्रीराम और श्रीकृष्ण की कथाएं खूब सुनी जाती हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में कहा गया है जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। 


जी हां। जिसकी जैसी भावना उसके वैसे भगवान हैं। किसी ने उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा तो किसी ने उन्हें रसिया भी कहा। किसी ने उन्हें छलिया कहकर पुकारा तो किसी ने मित्रता की उ'चतम श्रेणी माना। ऐसे श्रीकृष्ण भगवान का जन्मदिन हर वर्ष पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। जगह-जगह जन्माष्टमी के अवसर पर अंखड रामायण के पाठ का आयोजन भी होता है। कहते हैं स'चे भक्त का हृदय निर्मल होता है और ईश्वर के दर्शन भी निर्मल हृदय के व्यक्ति को ही होते हैं। 


गोस्वामी जी ने लिखा है कि निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा। जी हां। भक्ति तो निर्मल ही होनी चाहिए तभी उसका फल मिलता है दिखावे की दुनिया तो नश्वर होती है। रावण की लंका में भी विभीषण उस परमसत्ता की भक्ति करता रहा और रावण का पहरा लगा ही रहा। नतीजा यह मिला कि आज भी पुराणों के अनुसार विभीषण जीवित रहकर सुख भोग रहा है। भले ही कुछ समय के लिए उसको संकट का सामना करना पड़ा था। 


लेकिन जो ईश्वर की शरण में रहते हैं उनका बाल भी बांका नहीं होता। उनके अंदर की शक्ति उन्हें सामर्थ्यवान बनाती है। भक्ति के प्रभाव से ही वीर हनुमान समुद्र लांघ कर माता सीता की खोज ही नहीं बल्कि रावण को उचित दंड भी दे आते हैं। ईश्वर तो वही हैं चाहे श्रीराम में उनको देखो या श्रीकृष्ण में। 


भक्त प्रहलाद ने तो उनको महल के खम्बे में देखा। और भक्त की रक्षा के लिए ईश्वर उसी खम्बे से प्रकट हुए। जब बात स'ची भक्ति की होती है तो ईश्वर भी भक्त का मान रखने के लिए भात तक ले आते हैं। अद्भुत कथा है नरसी जी का भात। फिलहाल सभी भक्तों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।




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